भारतवर्ष की प्राकृतिक वनस्पतियाँ
किसी भी राष्ट्र के सतत विकास के लिए वनोक होना नितांत आवश्यक हो जाता है। वन एक राष्ट्रीय संपदा होती है। वह सुंदर और मनमोहक दृश्य उत्पन्न करते हैं। ये किसी भी देश के प्राकृतिक सौंदर्य में वृद्धि करते है। जंगल, वर्षा के जल को स्पंज की भांति शोखते है जिससे वह प्रदेशों में बाढ़ के प्रकोप कम होती है। जंगल भूमि के क्षरण को भी रोकती है। जंगलों में वृक्ष के पत्तियाँ सूखकर धरती पर गिरती है, वे धीरे धीरे सड़-गल कर मिट्टी में मिल जाती है और मिट्टी को बहुत उपजाऊ और उर्वरा बनाती है। वन पशुओं के लिए विस्तृत चारागाह के रूप में भी प्रयुक्त किया जाता है। वनों से हमे केवल लकड़ियाँ ही नही मिलती हैं बल्कि ये हमारे उधोग-धंधों के लिए उपयुक्त कच्चे माल और पशुओं के चारा भी उपलब्ध कराती हैं।वनों से नमी निकलती रहती है जिससे वायुमंडल का तापमान सम होकर आद्र बन जाता है।
भारत मे पाए जाने वाले वनों को निन्म भागों में बांटा गया हैं।
1.उष्ण कटिबंधीय सदाबहार वन :-
सामान्यतः अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में उष्ण कटिबंधीय सदाबहार वन पाये जाते है। अत्यधिक वर्षा के फलस्वरूप ये वन सघन और सदाबहार रहते हैं। अनेकों प्रकार की लताओं, झाड़ियों और छोटे -मझोले पौधों की अधिकता एवं दलदली क्षेत्र होने के कारण ये वन अत्यंत सघन एवं दुर्गम होते है। यहाँ पर वृक्षों में सूर्य का प्रकाश प्राप्त करने के लिए प्रतिस्पर्धा लगी हुई रहती है जिससे वृक्ष 40 से 60 मीटर तक ऊँचे हो जाते है। इन वनों के वायुमंडल में आद्रता का प्रतिशत सालों भर 70 % से अधिक रहती हैं। यहाँ की वार्षिक वर्षा का औसत 200 सेंटीमीटर से अधिक रहता है। भारत मे इसप्रकार के वनों का विस्तार तीन क्षेत्रों में मिलता हैं।
(I) अंडमान-निकोबार द्वीपसमूह एवं लक्ष्यद्वीप।
(ii) उत्तर-पूर्वी भारत मे आसाम एवं पश्चिम बंगाल के राज्यों में 1200 मीटर तक कि ऊँचाई वाले क्षेत्रों के अधिक वर्षा एवं उच्च तापमान के वजह से पाए जाने वाले सदाबहार वन
(iii) केरल,कर्नाटक और महाराष्ट्र के पश्चमी घाटों पर 600 से 1850 मीटर तक कि ऊँचाई वाले वन। इन वनों में पाए जाने वाले वृक्ष महोगनी, रबड़,जंगली आम,साल, गुरजन, तुन, ताड़, बांस, ऐबोंनी, लौह-काष्ठ, तुलसर, नाहर इत्यादि है। ये वन विषुवतरेखीय जलवायु वाले क्षेत्रों में पाए जाते है।
(2) उष्ण-कटिबंधीय तर मानसूनी वन
इस प्रकार के वन उत्तरप्रदेश,बिहार,उड़ीसा,पश्चमी बंगाल और दक्षिण में पश्चमी घाट के पूरब से लगा मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र,कर्नाटक,केरल के शुष्क भागों में कुमारी-अंतरीप और तमिलनाडु तक मिलते है।
इन वनों में साल, बाँस, खैर, तेंदू,, सागवान, साखू, कुसुम, पलाश, आँवला, शीशम, अंजन, अंजु, बहेड़ा, ज़ारूल, लाल और सफेद चंदन इत्यादि के लकड़ियाँ प्राप्त होती है। इन वनों को सुरक्षित वनों के।रूप में रखा गया है। इन क्षेत्रों में वर्षा वर्षपर्यन्त100 से 200 सेंटीमीटर तक होती है। मध्यप्रदेश के पठारी भागों एवं महाराष्ट्र के चंद्रपुर जिला सागवान की लकड़ी के लिए प्रिसिद्ध है।
3.उष्ण-कटिबंधीय शुष्क कटीले (झाड़ियों) वन
इन प्रकार के वनों में वृक्ष की ऊंचाई सामान्यतः 6 से 9 मीटर तक ही होती है। इन प्रकार के वन उन प्रदेशों में पाये जाते है जहाँ पर वर्षा 50 से 100 सेंटीमीटर के मध्य होती है। इन क्षेत्रों में वर्षा जल अपर्याप्त होने के कारण ज्यादा ऊँचे और हरे-भरे नही हो पाते हैं। विशेषतः इन क्षेत्रों में झाड़ियों और कम ऊँचे वृक्ष की अधिकता रहती है। इन क्षेत्रों के पेड़-पौधे की जड़े बहुत गहरी और मोटी होती है जिसके कारण ये जड़े भूमि से जल सोख लेते है। वाष्पीकरण से बचाव के लिए कुछ पेड़ मोटी पत्तियाँ और काँटेदार वाले होते है।
इस प्रकार के वन राजस्थान, दक्षिण-पश्चिम पंजाब, हरियाणा, दक्षिण -पश्चमी उत्तरप्रदेश, पश्चमी घाट का पूर्वी प्रदेश में पाए जाते हैं। बबूल, खैर, नीम, पलास, बेर, नागफनी, महुआ, रीठा, खजूर, खेजड़ा इत्यादि प्रमुख वृक्ष है।
4. ज्वारीय एवं डेल्टाई वन
इस प्रकार के वन मुख्यतः नदियों के डेल्टाई भागों तथा समुन्द्र के तटवर्ती मैदानों के निचले दलदली क्षेत्रों में पाये जाते है। इन वनों के वृक्ष की ऊंचाई 20 से 30 मीटर के मध्य रहती है। यह सदबहारी वृक्ष होते है। इन क्षेत्रों के वनों के वृक्ष की जड़े सदैव दलदली भागों में डूबी रहती है और कुछ जड़े सतह से ऊपर भी निकली हुई रहती है। अगार, सुंदरी, केवड़ा, बेंत, सोंन्नाहिय, ताड़, केतकी, गोरन इस वनों के प्रमुख वृक्ष है। ये वन कृष्णा, कावेरी, गोदावरी, महानदी, गंगा के डेल्टाई भागों में प्रमुख रूप से प्राप्त होती है।5. मरुस्थलीय एवं अर्द्ध मरुस्थलीय वन
यह वन उन क्षेत्रों में मिलते है जहाँ वार्षिक वर्षा का औसत 50 सेंटीमीटर से कम रहती है। बबूल, नागफनी, खैर, खेजड़ा, रामबाँस, इन क्षेत्रों के प्रमुख वृक्ष है। इन वनों के पत्तियाँ कम छोटी तथा काँटेदार होने से वृक्ष झाड़ियों के रूप में मिलते हैं। कैक्टस जाति के पौधे मुख्यतः मिलते है।