पराशर झील एक अलौकिक और प्राकृतिक रचना
हिमाचल प्रदेश देवों एवं ऋषियों की भूमि है। इसी पवित्र भूमि वाले प्रदेश के जिला मंडी में एक अद्भुत झील है जो प्राकृतिक रूप से निर्मित है जिसे पराशर झील के नाम से जाना जाता हैं। झील के चारों तरफ ऊंची ऊँची पहाड़ियों को देखकर ऐसा महसूस कर सकते है कि प्रकृति ने स्वयं इसे निर्मित किया है। इस झील में मछलियाँ भी है।
प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर इस झील के अंदर एक तैरती हुई भूखंड है।जो कभी कभी अनवरत यानी सालों भर तैरती रहती हैं या वर्ष भर रुकी हुई रहती है। इस झील की गहराई अभी तक पता नहीं चल सका है। कभी कभी ये भूखंड दिन में चार पाँच बार अपने झील के ईर्द- गिर्द चक्कर लगाती हैं। इस तैरती हुई भूखंड को स्थानीय भाषा मे “टाहला” कहा जाता है। यह एक आश्चर्यजनक दृश्य है। यह झील समुद्र तल से लगभग 2930 मीटर यानी 9000 फुट की ऊँचाई पर अवस्थित है। पराशर झील की सुंदरता हर मौसम में बदलती रहती है और एक नए रूप से दिखती हैं।
महर्षि वशिष्ठ, भगवान ब्रह्मा जी के बड़े मानस पुत्र थे। ऋषि पराशर, इन्ही वशिष्ठ ऋषि के पौत्र मुनि शक्ति के पुत्र थे। उन्ही के द्वारा इस झील का निर्माण किया गया था। ऋषि पराशर मंत्रो के महान ज्ञाता, शास्त्र रचियता जाने जाते है। पराशर का अर्थ है जिनके दर्शन से समस्त पापों का नाश हो। माना जाता है कि ऋषि पराशर 12 वर्ष तक माता के गर्भ में थे। अपनी दिव्य शक्ति के बल पर अपनी माता से वार्त्तालाप किया करते थे। इसी दरम्यान उन्होंने अनेकों ज्ञान प्राप्त कर लिए थे। उन्होंने अपने तप,त्याग और ज्ञान से दिग्भ्रमित समाज को एक नयी राह दिखाई थी। उनके द्वारा प्रदान की गई जयोतिष शास्त्र मानव समाज के लिए सर्वश्रेष्ठ और अमुल्य धरोहर है।
कुलन्द गाँव के ठीक सामने है कुमारी-घाट गाँव और कुमारी-घाट गाँव की ठीक पीछे जालंधर पीठ हैं। महर्षि पराशर के आश्रम में एक ऐसा पत्थर है जिसके नीचे से दूध और शहद की धारा बहती रहती थी।
झील के नज़दीक एक मंदिर पैगोडा की आकृति जैसा है। 13वीं-14वी शताब्दी में राजा बन सेन द्वारा इस मंदिर का निर्माण किया गया है, जिसमें ऋषि पिंडी (पत्थर) के रूप में मौजूद हैं। इस मंदिर के दीवारों पर देवी-देवता, सांप, पेड-पौधे, फूल, बेल-पत्ते, बर्तन व पशु-पक्षियों के चित्र बाहर और अंदर दोनों तरफ नक्कासीदार किये हुए हैं। इस मंदिर में पत्थरों के साथ लकड़ी का प्रयोग किया गया है। मंदिर प्रांगण में एक रेस्ट हाउस है जो निशुल्क है लेकिन कंबल के लिए कुछ रुपये देने पड़ते है।
यहाँ पर जून के महीने में “सरनौहाली” मेला होता है जिसमें मंडी जिला और कुल्लू जिलों की बड़ी संख्या में स्थानीय निवासी भाग लेते हैं। एक वन रेस्ट हाउस, एचपीपीडब्ल्यूडी रेस्ट हाउस और मंदिर समिति के सराय रात के ठहरने के लिए उपलब्ध हैं। यह झील मंडी जिला मुख्यालय से उत्तर दिशा में लगभग 50 किलोमीटर की दूरी पर है। पराशर झील में आने के लिए कुछ दूरी पुर्व ही से पैदल आना पड़ता है। इसे प्रदूषण से मुक्त रखने के लिए यह बहुत ही आवश्यक है।